
नक़ल शब्द अपने भीतर नकारात्मकता समाहित किए हुए होता है. नक़ल शब्द को सुनते ही लोग मुंह बनाने लगते हैं. लेकिन, दिमाग़ को लोगों के इस मुंह बनाने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. वह नक़ल करके ही सीखता है. जन्म से ही मनुष्य नक़ल करना शुरू कर देता है. बोलना, चलना, खाना, पीना… आदि लगभग सभी काम वह नक़ल करके ही तो सीखता है. मनुष्य क्या हर जीव नकलची होता है. अपने माता पिता और अन्य से हमारी शिक्षा की शुरुआत नक़ल से ही होती है. एक नवजात शिशु के पास आप ज्ञान के सागर रूपी ग्रंथ रख दीजिए और बाक़ी के इंसानों से उसे जुदा कर दीजिए तो क्या वह कुछ सीख पाएगा? और यदि उसके पास एक बकरी को रख दिया जाए तो वह उसकी तरह चलना सीख लेगा और मिमिया कर बोलने भी लगेगा. क्या बकरी ने उसे कुछ सिखाया? नहीं, यह वह उसकी नक़ल करके सीखा.
हम नक़ल करते हैं, क्योंकि दिमाग़ हमेशा सुरक्षित रास्तों की तलाश में होता है
जो रास्ता उसे सुरक्षित लगता है वह उस तरफ़ बढ़ जाता है. जिस काम को बहुत सारे लोग करते हुए दिखते हैं उस काम को दिमाग़ सुरक्षित मान लेता है और वह करने के लिए हमें प्रेरित करता है. मान लीजिए एक मंज़िल पर पहुंचने के लिए दो पगडंडियां हैं. आपको भी उस मंज़िल तक पहुंचना है. आप देखते हैं कि एक पगडंडी पर बहुत सारे मुसाफ़िरों का रेला है और दूसरी पर इक्कादुक्का. अब आप भी अधिकांश मुसाफ़िरों की तरह उस पगडंडी पर चल पड़ेंगे जिसपर ज़्यादा लोग जाते हुए दिख रहे हैं. अगर सचेत होकर आप अपने दिमाग़ से राय मशविरा करेंगे तो भी वह आपको उसी रास्ते पर चलने की सलाह देगा. और अगर आप नहीं पूछेंगे तो भी आप उसी रास्ते पर बिना पैरों को आदेश दिए उसपर निकल पड़ेंगे. ऐसा क्यों हुआ? हां, सुरक्षा की वजह से, जिधर ज़्यादा लोग जाते हुए दिखे उस रास्ते को दिमाग़ ने सुरक्षित और आसान माना.
क्या हम कोरोना से निपटने के लिए भी एक-दूसरे की नक़ल कर रहे हैं?
अभी हाल ही का वाक़िया लीजिए, कोरोना से निपटने का. कई देशों ने एक के बाद एक लॉकडाउन किए. दूसरे कई देशों ने भी उनकी तरह आव देखा ना ताव और अपने अपने देशों में लॉकडाउन कर दिया. कहीं भी इतने बड़े और विध्वंसक क़दम का कोई विरोध नहीं हुआ, क्यों? क्योंकि, सबको लगा कि यही सबसे सुरक्षित तरीक़ा है क्योंकि सब इसी पर जो चल रहे हैं. स्वीडन के रास्ते जाने में (हर्ड इम्यूनिटी अपनाने) सबको डर लगा, क्यों? क्योंकि, सबको लगा कि यह असुरक्षित है, क्योंकि कोई भी इस रास्ते पर नहीं चल रहा है भाई. अब जबकि अधिकांश देश कोरोना से हार स्वीकार कर चुके हैं और अपने अपने देशों से लॉकडाउन हटा रहे हैं जबकि स्थिति तो अब ज़्यादा विकट और डरावनी है. लेकिन अब सब लॉकडाउन हटाने पर भी सहमत दिख रहे हैं, क्यों? क्योंकि, अब सबको इस रास्ते पर जाते देखकर बाक़ियों को भी यही रास्ता सुरक्षित लग रहा है. यही नक़ल है. ऐसा ही अधिकांश मनुष्य और जीव करते हैं. यह मनुष्य के मन का स्वभाव है कि वह सुरक्षा तलाशता है. सुरक्षा की तलाश में वह नक़ल करता है. लेकिन यह बात कभी नहीं भूलना चाहिए कि,‘नक़ल में भी अक़ल की ज़रूरत होती है.’